किसी भी बड़ी सफलता की शुरुआत छोटी ही होती है। आज देश के सबसे बड़े कारोबारी घराने रिलायंस की भी शुरुआत ऐसे ही हुई थी। 1958 में रिलायंस के संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने महज 15,000 रुपये का निवेश कर रिलायंस कॉमर्शियल कॉरपोरेशन के नाम से कंपनी की शुरुआत की थी। यह कंपनी कमोडिटी ट्रेडिंग और एक्सपोर्ट हाउस के तौर पर काम करती थी। आज वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड 12 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैपिटलाइजेशन को पार कर गया है, जिसके मुखिया उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी हैं। हालांकि यह सब इतना आसान नहीं था और शुरुआती जिंदगी में धीरूभाई अंबानी को कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। आइए जानते हैं, कैसे पकौड़े बेचने, पेट्रोल पंप पर काम करने वाले धीरूभाई अंबानी बने देश के दिग्गज कारोबारी…
‘धीरूभाई अंबानी: द इंडियन टाइगर’ पुस्तक के मुताबिक अंबानी परिवार का गोत्र भी वही है, जो महात्मा गांधी के परिवार का है। दोनों ही मोढ बनिया गोत्र से आते हैं। धीरूभाई अंबानी के पिता हीराचंद अंबानी गांव के एक स्कूल में अध्यापक थे और मां जमनाबाई घरेलू महिला थीं, लेकिन बेहद मितव्ययी थीं। हालांकि पति की कम कमाई के चलते कई बार उन्हें कर्ज भी लेना पड़ जाता है। इस आर्थिक संकट के चलते ही धीरूभाई अंबानी को जल्दी ही काम-धंधे में जुटना पड़ा था।
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दरअसल इसकी शुरुआत यूं हुई थी कि एक बार उनकी मां जमनाबाई ने धीरूभाई अंबानी और उनके बड़े भाई रमणिकभाई से कहा था कि उन्हें अपने पिता का हाथ बंटाना चाहिए ताकि आर्थिक संकट कम हो सके। इस पर धीरूभाई अंबानी ने गुस्से में कहा था, ‘आप हमेशा पैसा-पैसा करती रहती हो, पैसों का तो एक दिन ढेर लगा दूंगा।’ भले ही अंबानी ने अनायास ही ये शब्द कहे थे, लेकिन उनके प्रयासों से यह बात सही साबित हुई।
धीरूभाई अंबानी ने एक दिन पड़ोस के एक होलसेलर से एक टिन मूंगफली का तेल खरीदा और रोड के किनारे बैठकर उसे रिटेल में बेच दिया। इससे उन्हें कुछ रुपये का लाभ हुआ था, जो उन्होंने मां जमनाबाई के हाथों में रख दिए। यह धीरूभाई अंबानी के पैसे कमाने की शुरुआत थी। इसके बाद वीकेंड्स पर जब उनके स्कूल की छुट्टी होती थी, तब वह मेलों में पकौड़े बेचने लगे। यही नहीं महज 17 साल की उम्र में वह यमन चले गए थे और वहां एक पेट्रोल पंप पर नौकरी करने लगे थे, लेकिन फिर कुछ बड़ा करने की चाहत में भारत वापस लौटे और कारोबार शुरू किया।
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